स्कूल की बाल संसद के साथ मिलकर वर्षा जल संग्रह कर प्रस्तुत की मिशाल

स्कूल की बाल संसद के साथ मिलकर वर्षा जल संग्रह कर प्रस्तुत की मिशाल

सुठोठ,जमनालाल कनीराम बजाज ट्रस्ट (Bajaj foundation),सीकर जिले के 6 ब्लॉक में सामाजिक विकास के कार्य कर रहा है | इसी के अन्तर्गत स्कूलों में बच्चो के साथ भी एक प्रोग्राम चलता है (डिज़ाइन फॉर चेंज) जिसमे बच्चों को सिखाया जाता है कि आप कैसे अपनी समस्याओ को समझ कर उन पर विचार मंथन कर अपने स्तर पर ही उन समस्याओ को सुलझा सकते हो|
बजाज फाउनडेशन के प्रोग्राम ऑफिसर प्रशांत कुमार बच्चो के साथ ये प्रोग्राम कर ही रहे थे उसी दोरान दिनांक 29 जून को समाचार पत्र, सीकर में बारिश के पानी को ओपन बोर वेल में उतार कर रिचार्ज करने को लेकर विस्तृत समाचार प्रकाशित जिससे बच्चो को प्रेरणा मिली व सभी बच्चो ने इस मुद्दे पर स्कूल में निर्वाचित बाल संसद में रखा गया । बाल संसद के प्रधान मंत्री रोशन गुर्जर व मंत्रीमंडल के सभी पदाधिकारियो ने इस पर गहन चर्चा की व सभी इस निर्णय पर पहुंचे की अपने स्कूल परिसर में जो बोर बना हुआ है उसमे बहुत कम पानी आता है और दिन प्रति दिन कम होता जा रहा है अत: क्यों ना हम सब मिलकर इस समस्या का समाधान करे इसके बाद सभी बच्चो ने सर्वसम्मति से निर्णय कर स्कूल बोरवेल को रिचार्ज करने का प्लान तयार किया
यह प्रस्ताव बच्चो ने संस्था प्रधान अमिकेश गुर्जर के पास रखा खर्च ज्यादा था मगर संस्था प्रधान ने बच्चो को इस पर कार्य करने की मंजूरी देते हुए हर संभव सहयोग करने का वादा किया |
इस पर अमल करते हुए बच्चों ने तुरंत शुरु करने हेतु तकनिकी सहयोग के लिए स्कूल व्याख्याता विनोद चाहर के माध्यम से बजाज फाउनडेशन के प्रोग्राम को ऑर्डिनेटर सुरेन्द्र राजोरिया से सम्पर्क किया व इनके तकनिकी सहयोग से कार्य प्रारम्भ कर दिया जिसमे बच्चो ने अपनी जेब खर्च के साथ साथ ग्रामवासियों से भी आर्थिक सहयोग लिया इस कार्य को संपन्न करवाने में बच्चो के साथ संस्था प्रधान अमिकेश व सभी अध्यापको ने कंधे से कंधा मिलाकर कार्य किया व दिनांक 22 जुलाई को रिचार्ज का कार्य पूर्ण करलिया गया।
बच्चो की मेहनत और लगन को देखते हुए इन्द्रदेव भी उन पर इतना प्रसन्न हुए की दिनांक 23 जुलाई को घुमड़ कर बरसे लाखों लीटर पानी इस बोर में रिचार्ज हुआ आज स्कूल के सभी बच्चों व अध्यापकों की प्रसन्नता व उत्साह देखते ही बनता है |जैसा कि राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय सूठोठ के व्याख्याता विनोद चाहर के अनुभव और प्रशिक्षण ही नीव का पत्थर साबित हुआ जिससे अमूर्त को मूर्त स्वरूप मिला।

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