मौनी बाबा का जीवन परिचय:-पुण्यतिथि पर विशेष


मौनी बाबा का जीवन परिचय:-पुण्यतिथि पर विशेष

नलहटी बंगाल से सम्बन्ध रखने वाले योगी श्वेत वस्त्र धारित नेछवा मे 1970 मे धरा को पावन किया। ग्रामिणों का मानना है कि नेछवा मे आने से पहले कुछ समय नेछवा मुक्तिधाम में व्यतीत किया और तपस्या की।
उसके उपरान्त नेछवा के प्रसिद्ध बड़े मन्दिर के आगे पीपल के चबुतरे पर विश्राम करने लगे।लोगों के लिये कौतुहल का विषय बन गया। वृद्ध पुरुष इस भूतल का न होकर किसी दिव्य लोक का प्रतीक होता हैं।उसकी पांच भौतिक देह मणिजड़ित तप्त स्वर्ण के समान है। उन्होने सफेद रंग की बाहेदार अंगरखी व उसी रंग की धोती पहन रखी थी।
गाँव के रामदेव पीपलवा,मोतीलाल मिश्रा,कुन्ज बिहारी जोशी और नन्द लाल स्वामी योगी पुरुष ने निकट गये और प्रणाम करते हुए नेछ्वा आने का कारण पुछा।
उन्होने स्लेट या पट्टिका पर अपने सम्प्रदाय व पुरा विवरण लिखकर बताया। मौनवृक्ति के कारण उनका नाम मौनी बाबा नेछवा अंचल मे प्रसिद्ध हुआ।
ग्रामवासियों ने गोपीनाथ मन्दिर मे रहने का अनुरोध किया और उनके लिये धुणा लगाकर रहने की व्यवस्था की।
बाबा का अपने नलहटी आश्रम और नेछवा में आना जाना रहता था।
नवरात्रा के समय उदयपुरवाटी में स्थित शाकम्बरी माता मन्दिर में और नेछवा मे खड़ेश्वर(नौ दिवस एक टांग पर खड़े रह कर)नवरात्रा किये।
धीरे-धीरे उनकी तपस्या का तेज आस पास के क्षेत्रो मे फैलने लगा और सन्तो का आना जाना प्रारम्भ हो गया जिनमे गंगाजत्ती महाराज गाड़ोदा,बोदलासी दयानाथ जी मुख्य थे।
विशेष रुप से बच्चो से अधिक स्नेह रखते जिससे आस पास के विद्यालय मे पढने वाले बच्चो को स्नेह रुप मे मिठी गोलिया देते थे।
मौनी बाबा ने अपना मौनव्रत लगभग 12 साल रखा उसके उपरान्त अपनी जननी को दिये वचन की पालना करने अपने जन्म स्थल राणाविघा,जिला बाढ़, पटना बिहार गये वचन के अनुसार अपनी देह त्यागने से पहले माता से मिलने अवश्य आयेंगे,माता की देह शान्त होने के बाद 8 सितम्बर 2008 को स्वयं भी देह त्याग दी। 
नेछवा मे उसी दिवस से लगातार प्रथम दिन भव्य जागरण और दूसरे दिन महाप्रसादि की जाती है जिसमे दूर दूर से श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करने आते है।यह कार्यकम अनवरत चल रहा है।
मौनी बाबा नेता जी सुभाष चंद्र बॉस के द्वारा गठित आज़ाद हिन्द फ़ौज के सिपाही रहे।
मौनी बाबा के चमत्कारिक प्रमाण :-
1.मौनव्रत की समाप्ति पर वाणी पर साक्षात मॉ सरस्वती विराज मान हो गयी,दुखियो और भगतो को वचन के माध्यम से कष्ठो का निवारण कर देते थे।
2. मौनी बाबा अपने कुछ भक्तो के साथ बील का रस निकाल रहे थे अचानक भक्तो की  संख्या बढ़ गई सभी भक्त एक दूसरे का चेहरा देखने लगे कि सभी को रसपान कैसे होगा लेकिन बाबा के चेहरे पर दिव्य मुस्कान जारी थी जिस पात्र मे रस तैयार किया था उसमे सभी भक्तो और आस पास के लोगों को भी रसपान करवाया फिर भी शेष रहा।
3. *चमत्कारिक तपड़:-* मौनी बाबा जिस तपड़ पर विराजमान थे वहा घन की देवी लक्ष्मी विराजित होती थी किसी कार्य के लिये तपड़ के निचे से रुपये निकालकर देते थे उनकी अनुपस्थिति मे किसी भक्त ने तपड़ उठाकर रहस्य को जानना चाहा निराशा हाथ लगी। लेकिन शाम को मौनी बाबा ने स्वय उस भक्त से पुछा कुछ मिला क्या,भक्त स्तभद रह गया।
सासांरिक देह त्यागने के बाद भी मौनी बाबा नेछवा मे दिव्य रुप मे कण कण मे दिव्यमान है।
जय मौनी बाबा की।
सूचना संकलन:-ग्रामीणों का व्यक्तिगत साक्षात्कार।


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